शोगी एफेंदी द्वारा सन् 1952 में तैयार किया गया नक्शा जिसमें बहाई धर्म के विश्वव्यापी विकास को दर्शाया गया है।

शोगी एफेंदी – बहाई धर्म के संरक्षक

शोगी एफेंदी के लेखों से उद्धरण

शोगी एफेंदी की लिखित कृतियाँ मनुष्य की गतिविधियों और विचारों के लगभग सभी पहलुओं से सम्बन्ध रखती हैं।

उनके पत्रों में बार-बार पाये जाने वाले विषय: विश्वव्यापी बहाई समुदाय की प्रशासनिक संस्थाओं का विकास; निजी आध्यात्मिक जीवन का परिष्कार; बहाई धर्म का विश्वव्यापी प्रसार और सुगठन, विधानों, शिक्षाओं और सिद्धांतों की व्याख्या; केन्द्रीय विभूतियों को शामिल करते हुये प्रभुधर्म का इतिहास और विश्व सभ्यता का इतिहास तथा इसके विकास को गतिशील करने वाली शक्तियाँ।

नीचे शोगी एफेंदी के लेखों से संक्षिप्त संकलन दिये गये हैं

बहाउल्लाह का प्रकटीकरण कितना विशाल है! उनके आशीषों की कितनी बड़ी महत्ता है जो इस युग में सम्पूर्ण मानवजाति पर बरसाये गये हैं! और फिर भी, उनके महत्व और गौरव की समझ कितनी कम है। यह पीढ़ी इतने विशाल प्रकटीकरण के इतने करीब है कि इसके महत्व को समझने, पूरी तरह से इसकी शक्ति का मूल्यांकन करने और बहाउल्लाह के धर्म की असीम सम्भावनाओं को परखने और उनके धर्म के अद्वितीय स्वरूप को जान पाने में असमर्थ है।

(“बहाउल्लाह की विश्व व्यवस्था: कुछ और विचार,” “बहाउल्लाह की विश्व व्यवस्था”)

ईश्वर का उद्देश्य लम्बे समय से विभाजित, चिरपीड़ित मानवजाति के एक महान स्वर्णिम युग की घोषणा करने के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं, वैसे साधनों द्वारा जो केवल वह ही दे सकता है और जिसका पूरा महत्व केवल वह ही समझ सकता है! इसकी वर्तमान अवस्था और सच तो यह है कि इसका निकट भविष्य अंधकारपूर्ण है, कष्टों से भरा अंधकार है, किन्तु इसका दूरस्थ भविष्य कान्तिमय है, चमत्कारपूर्ण कान्ति से भरा हुआ - इतना कान्तिमय की कोई भी आँख इसकी कल्पना नहीं कर सकती।

(“प्रतिज्ञापित युग आ गया है” (द प्रॉमिस्ड डे इज़ कम))

तर्कसंगत ढंग से जो हम कोशिश करने का साहस कर सकते हैं वह यह कि उस प्रतिज्ञापित भोर की किरणों की एक झलक पाने का प्रयत्न करें जो समय पूरा होने पर अवश्य ही उस अंधेरे को मिटा देगा जिसने मानवजाति को घेर रखा है।

(“एक नई विश्व व्यवस्था का लक्ष्य,” “बहाउल्लाह की विश्व व्यवस्था”)

बहाउल्लाह का प्रकटीकरण, जिसका परम महान उद्देश्य और कुछ नहीं, बल्कि राष्ट्रों के महासंघ की मूलभूत और आध्यात्मिक एकता को प्राप्त करना है और अगर हम इसके परिणामों के प्रति निष्ठावान रहे तो इसे सम्पूर्ण मानवजाति के युग के आने का संकेत होना चाहिये।

(विश्व सभ्यता का उदय, “बहाउल्लाह की विश्व व्यवस्था”)

कोई भ्रम न होने दें। मानवजाति की एकता का सिद्धांत - वह धुरी जिसके गिर्द बहाउल्लाह के सभी सिद्धांत घूमते हैं - कोई अनभिज्ञ भावुकता की लहर अथवा अनिश्चित और धर्मनिष्ठ अभिव्यक्ति नहीं है। इसकी अपील को न केवल मनुष्यों के बीच बंधुत्व की भावना को पुनर्जाग्रत करना और सद्भाव है और न ही लोगों और राष्ट्रों के बीच केवल समरसतापूर्ण सहयोग को बढ़ावा देना है। इसके निहितार्थ गहरे हैं, इसके दावे पहले के अवतारों द्वारा किये गये दावों से महत्तर हैं, इसके संदेश केवल व्यक्तियों के लिये नहीं हैं, अपितु उन आवश्यक सम्बन्धों को भी अपने दायरे में लेते हैं जो सभी राज्यों और राष्ट्रों को एक मानव-परिवार के सदस्यों के रूप में एकसूत्र में बांधते हों। यह मात्र एक आदर्श की घोषणा नहीं करते, बल्कि एक ऐसी संस्था के साथ भी अविभाज्य रूप से जोड़ता है जो इसके सत्य को निरूपित करने, इसकी मान्यता को स्थापित करने और इसके प्रभाव को स्थायित्व प्रदान करने के लिये पर्याप्त है। यह वर्तमान समय के समाज के ढ़ाँचे में स्वाभाविक परिवर्तन को अपने में समाविष्ट करता है, एक ऐसा परिवर्तन जिसे दुनिया ने अभी तक देखा नहीं है... यह मानव-विकास की समाप्ति का प्रतिनिधित्व करता है - एक ऐसा विकास जिसकी शुरूआत पारिवारिक जीवन से हुई थी, बाद में इसका विकास कबीलों की पूर्ण एकता के रूप में हुआ, जिसके बाद नगर-राज्य बने और जो विकसित होकर स्वतंत्र और प्रभुसत्तासम्पन्न राष्ट्रों की संस्था बन गये।

(एक नई विश्व व्यवस्था का लक्ष्य: “बहाउल्लाह की विश्व व्यवस्था”)

सम्पूर्ण मानवजाति की एकता विकास के उस चरण का प्रतीक है जिस ओर पूरा मानव-समाज बढ़ रहा है। परिवार की एकता, कबीलों की, नगर-राज्यों की और राष्ट्रों की एकता की सफल कोशिशें हो चुकीं हैं और इन्हें पूरी तरह स्थापित भी किया जा चुका है। विश्व-एकता वह लक्ष्य है जिसकी ओर जाने की कोशिश एक परेशान मानवजाति कर रही है।

(“विश्व सभ्यता का उदय” “बहाउल्लाह की विश्व व्यवस्था”)

बहाउल्लाह के विश्वव्यापी विधान के प्रति किसी को कोई आशंका नहीं होनी चाहिये। समाज के वर्तमान आधारों को विनष्ट करने के लक्ष्य से बहुत दूर, यह इसके आधार को विस्तार देना चाहता है, इसकी संस्थाओं को कुछ इस प्रकार गढ़ना चाहता है जो नित्यप्रति परिवर्तनशील दुनिया की आवश्यकताओं के अनुरूप हों। इसका विरोध किसी भी न्यायसंगत संधि से नहीं है, न ही यह आवश्यक निष्ठा को कम कर आंकता है। इसका उद्देश्य न तो मनुष्य के दिलों में एक संतुलित और विवेकपूर्ण राष्ट्रभक्ति की ज्वाला को बुझा देना है और न ही राष्ट्रीय स्वायत्तता की प्रणाली को ख़त्म करना है, जो अत्यधिक केन्द्रीकरण की बुराइयों को नज़रअंदाज़ करने के लिये इतना ज़रूरी है। यह जातीय मूल की, इतिहास और भाषा की, परम्परा की, विचारों की और आदतों की विविधता की उपेक्षा नहीं करता और न ही उसे दबाना चाहता है, जो दुनिया के लोगों और राष्ट्रों की विशिष्टता दिखलाती है। यह एक विस्तृत निष्ठा का आह्वान करता है, जिस निष्ठा ने मानवजाति को अनुप्रेरित किया है। यह राष्ट्रीय प्रेरणा और हितों को एक एकीकृत विश्व के आवश्यक दावों के अधीन रखने पर बल देता है। एक ओर यह अत्यधिक केन्द्रीकरण का खंडन करता है तो दूसरी ओर एकरूपता के सभी प्रयासों को अस्वीकार करता है। इसका आदर्श है विविधता में एकता...

(“एक नई विश्व व्यवस्था का लक्ष्य”, “बहाउल्लाह की विश्व व्यवस्था”)

आचरण की अच्छाई, जिसका निहितार्थ है न्याय, समदृष्टि, सत्यवादिता, ईमानदारी, निष्पक्षता, विश्वसनीयता और विश्वासपात्रता, अवश्य ही बहाई समुदाय के जीवन के हर पहलू की पहचान बननी चाहिये। स्वयं बहाउल्लाह ने कहा है: “इस दिवस में ईश्वर के मित्र वैसे समूह हैं जो दुनिया के लोगों में अवश्य ही परिवर्तन ला सकते हैं। उन्हें अवश्य ही ऐसी विश्वासपात्रता, ऐसी सत्यवादिता और दृढ़ता, ऐसे कर्म और चरित्र का प्रदर्शन करना चाहिये कि समस्त मानवजाति उनके उदाहरण से लाभ उठा पाये।

(“दिव्य न्याय का अवतरण”)

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