विश्व न्याय मंदिर का भवन कार्मल पर्वत पर अर्धवृत्ताकार के शीर्ष पर संस्थापित है।

विश्व न्याय मंदिर 

एक अद्वितीय संस्था

विश्व न्याय मंदिर धार्मिक इतिहास में अद्वितीय है। किसी भी ईश्वर के अवतार ने पहले कभी भी ’अपने‘ धर्म की अखंडता और लचीलेपन को बनाये रखने, एकता की सुरक्षा करने और ’अपने‘ अनुयायियों की गतिविधियों का मार्गदर्शन करने तथा समाज के जीवन पर लाभकारी प्रभाव डालने के निर्देश के साथ इतने सुस्पष्ट ढंग से किसी संस्था की स्थापना का आदेश नहीं दिया था।

बहाउल्लाह द्वारा इसे दिये गये अधिकार के आधार पर विश्व न्याय मंदिर प्रशासनिक व्यवस्था के शीर्ष पर संस्थापित है, जिसकी विशेषतायें, अधिकार और काम करने के तरीकों को पवित्र लेखो में स्पष्ट रूप से व्यक्त किया गया है। इस प्रशासनिक व्यवस्था की संस्थाओं के कार्य की विशेषता प्रेमपूर्ण सेवा है, जो मानव क्षमता के विकास और सभ्यता की प्रगति पर केन्द्रित है।

अधिकार और कर्तव्य

विश्व न्याय मंदिर के सदस्य, अप्रैल 1963

बहाई पवित्र लेखों में विश्व न्याय मंदिर के निर्वाचित सदस्यों का वर्णन “ ’उसके‘ सेवकों के बीच ईश्वर के न्यासी और ’उसके‘ राष्ट्रों में सत्ता के दिवावसंत” 1 “न्याय के पुरूष” 2, “ईश्वर के प्रतिनिधि” 3, “सर्वदयालु के न्यासी” 4 के रूप में किया गया है। उन्हें अवश्य ही ’उनके‘ भेड़ों के चरवाहों 5 की तरह बहाउल्लाह के अनुयायियों की एकता को सुरक्षित बनाये रखने और उनके कल्याण के लिये, साथ ही, ‘‘ईश्वर के भय की अभिव्यक्ति करने वाले तथा ज्ञान और बोध के दिवावसंत’’ 6 तथा ‘‘ईश्वर की आस्था में दृढ़ और समस्त मानवजाति के हितेषी।’’ 7

विश्व न्याय मंदिर को लोगों के काम-काज का दायित्व दिया गया है। इसे अवश्य ही ‘‘लोगों को प्रशिक्षित करने में, राष्ट्रों को उन्नत बनाने में, मनुष्य को सुरक्षा देने और उसके सम्मान की रक्षा करने के लिए बहाई शिक्षाओं को लागू करना चाहिये।’’ 8 हर समय और सभी परिस्थितियों में लोगों के हितों के लिये सर्वाधिक ध्यान देना चाहिए और स्त्री-पुरूष तथा बच्चों की सुरक्षा और संरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिये।

दुनिया में शांति को बढ़ावा देना भी विश्व न्याय मंदिर के दायित्वों में एक है, “ताकि धरती के लोग अमर्यादित खर्चों के भार से मुक्त हो सकें”9 इसके अतिरिक्त, इसके सदस्य “अवश्य ही धर्म के स्थान की सुरक्षा”10 के लिये अपनी शक्ति के चरम तक जाकर प्रयास करें, “इसके हित को बढ़ावा दें और दुनिया के लोगों के सामने इसके स्थान को ऊँचा बनाये रखें।”11

चूँकि “परिवर्तन इस संसार का, समय का और स्थान का आवश्यक गुण और आवश्यक लक्षण है” 12, बहाउल्लाह ने विश्व न्याय मंदिर के सदस्यों को यह अधिकार प्रदान किया है कि वे ऐसे विषयों पर विचार करें जिनकी चर्चा ’उन्होंने’ अपने ‘लेखों’ में विशेष रूप से नहीं की है और “उन्हें लागू करें जिन पर उनकी सहमति हो” 13

“चूँकि प्रत्येक दिन की एक नई समस्या होती है और प्रत्येक समस्या का समयोचित समाधान होता है।”14 बहाउल्लाह ने लिखा है, “ऐसे मामलों को विश्व न्याय मंदिर के अभिकर्ताओं के पास भेजा जाना चाहिये ताकि वे समय की माँग और ज़रूरतों के अनुकूल काम कर सकें।”15

‘बहाई पवित्र लेख’ यह आश्वासन देते हैं कि विश्व न्याय मंदिर निर्णय लेगा और “पावन चेतना की प्रेरणा तथा सम्पुष्टि” के सहारे विधानों को संस्थापित करेगा 16 बहाईयों के लिये “इसके निर्णयों के प्रति आज्ञापालन एक बाध्यकारी और आवश्यक कर्तव्य और परम दायित्व है।” 17

उद्गम

विश्व न्याय मंदिर नामक संस्था की स्थापना का आदेश बहाउल्लाह द्वारा ‘उनकी परम पावन पुस्तक’, किताब-ए-अकदस में दिया गया है। ‘उनके’ अन्य कई ‘लेखों’ में इसके दायित्वों की विस्तारित विवेचना की गई है। अब्दुल-बहा ने ‘अपने इच्छा-पत्र और वसीयत’ में विश्व न्याय मंदिर के प्राधिकार को पुष्ट किया और इसकी स्थापना तथा इसके काम करने के तरीकों की विस्तृत विवेचना दी।

बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में एक ऐसे समय के उस दौरान जब ‘उनके’ जीवन पर ख़तरा मंडरा रहा था, अब्दुल-बहा ने, यह सोचकर कि अगर उन्हें कुछ हो गया तो, ऐसे कदम उठाये जायें कि विश्व न्याय मंदिर के चुनाव की व्यवस्था की जा सके। यह सावधानी बाद में आवश्यक नहीं जान पड़ी।

अब्दुल-बहा के स्वर्गारोहण के बाद शोगी एफेंदी, -- बहाई धर्म के संरक्षक-ने विश्व न्याय मंदिर की स्थापना को सर्वाधिक महत्व दिया। उन्होंने तीन दशकों तक अथक परिश्रम किया ताकि बहाई विश्व समुदाय उसके चुनाव के लिये तैयार हो सके, वह बराबर इस ओर ध्यान देते रहे कि वह शुभ घड़ी आये। किन्तु, पहले यह आवश्यक था कि स्थानीय और राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभाओं का एक विश्वव्यापी नेटवर्क खड़ा किया जाये और उसे मजबूत किया जाये ताकि ऐसे अस्तित्व को एक मजबूत आधार दिया जा सके। प्रत्येक नई राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभा जो गठित की गई वह “विश्व न्याय मंदिर के भार को सम्पोषित करने में और इसकी आधारशिला को विस्तार देने में’’ 18 एक और स्तम्भ बनी।

1951 में शोगी एफेंदी ने अनेक लोगों को एक अंतर्राष्ट्रीय बहाई परिषद पर नियुक्त किया, जो विश्व न्याय मंदिर की अग्रगामी संस्था थी। 1961 में इस मनोनीत परिषद को उस समय तक दुनिया भर में स्थापित राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभाओं और क्षेत्रीय सभाओं द्वारा एक निर्वाचित निकाय के रूप में पुनर्गठित किया गया।

शोगी एफेंदी की अचानक मृत्यु के बाद 1957 में, विशिष्ट बहाईयों के एक ग्रुप द्वारा बड़े ही विश्वस्त ढंग से इस काम को आगे ले जाया गया, जो बहाई शोगी एफेंदी द्वारा धर्मभुजा के रूप में नियुक्त किये गये थे। इन्हीं व्यक्तियों ने विश्व न्याय मंदिर के पहले चुनाव की व्यवस्था की।

अप्रैल, 1963 में,-बहाउल्लाह की जन-घोषणा की शताब्दी के अवसर पर सभी 56 राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभाओं द्वारा, जो उस समय तक विश्व में स्थापित हो चुकी थीं,--विश्व न्याय मंदिर का निर्वाचन किया गया। विश्व न्याय मंदिर के चुनाव के साथ ही, अंतर्राष्ट्रीय बहाई परिषद का अस्तित्व समाप्त हो गया।

विश्व न्याय मंदिर का अस्तित्व में आना अपने आप में एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना थी। प्रसार और सुगठन की एक शताब्दी से भी अधिक समय पश्चात-और एक विश्वव्यापी जनतांत्रिक निर्वाचन प्रक्रिया के माध्यम से-विश्व के बहाई बहाउल्लाह द्वारा आदेशित स्थायी अंतर्राष्ट्रीय संस्था को अस्तित्व में लाने में समर्थ हुये।

विश्व न्याय मंदिर ने अपने गठन के बाद आधी शताब्दी से भी अधिक समय समर्पित भाव से एक ऐसे बहाई समुदाय के गठन और सुदृढ़ीकरण के लिये काम किया है जिसके पास वह योग्यतायें और संसाधन हैं, जो बहाउल्लाह द्वारा परिकल्पित विश्वव्यापी सभ्यता की स्थापना में, बहाउल्लाह की शिक्षाओं को लागू करने की प्रक्रिया के साथ, दुनिया की बेहतरी के लिये साझेदारी कर सकता है।

विश्व न्याय मंदिर ने अपने काम में सहयोग प्रदान करने के लिये अनेक संस्थाओं को मनोनीत किया है; इनमें सलाहकारों के महाद्वीपीय मंडल और अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षण केन्द्र हैं।

जैसा बहाउल्लाह द्वारा संकेतित किया गया था, विश्व न्याय मंदिर की ‘सीट’ पवित्र भूमि में कार्मल पर्वत पर बाब की समाधि के करीब है।

निर्वाचन प्रक्रिया

विश्व न्याय मंदिर को तृस्तरीय प्रक्रिया के माध्यम से निर्वाचित किया जाता है।

प्रत्येक राष्ट्रीय बहाई समुदाय के सभी स्थायी वयस्क बहाई, 21 वर्ष या इससे अधिक उम्र के, तृणमूल स्तर पर चुनावों में भाग लेने के योग्य हैं, जिसे इकाई अधिवेशन के रूप में जाना जाता है और जिन्हें वर्ष में एक बार उनके पूरे देश में आयोजित किया जाता है। इन अधिवेशनों में बहाई गुप्त मत-पत्र द्वारा प्रतिनिधियों के लिये मतदान करते हैं, जो एक प्रशासनिक वर्ष के लिये राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभा के नौ सदस्यों के चुनाव के लिये उत्तरदायी होते हैं। तब राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभा राष्ट्रीय अधिवेशन में निर्वाचित की जाती है।

बोलिविया के एक प्रतिनिधि सन् 2008 में विश्व न्याय मंदिर के चुनाव के लिये अपना मतदान करते हुये

राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभाओं के सदस्य क्रमशः तब विश्व न्याय मंदिर के नौ सदस्यों का निर्वाचन करते हैं। विश्व न्याय मंदिर का चुनाव प्रत्येक पाँच वर्षों के बाद अंतर्राष्ट्रीय बहाई अधिवेशन में किया जाता है। अनेक दिनों के लिये यह अधिवेशन बहाई धर्म के विश्व केन्द्र हायफा, इज़रायल में होता है, जहाँ राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभाओं के सदस्यगण अपने कर्तव्य का अनुपालन करने के लिये अपने को तैयार करने के लिए पवित्र समाधियों पर जाते हैं। जब वे अपने मत-पत्र पर नौ सदस्यों के लिये नाम लिखते हैं तब उनके मन-मानस में बहाई लेखों से वैसे शब्द उभरते हैं जो वैसे व्यक्तियों को चुनने में उनकी मदद करते हैं जिन्हें ऐसे पवित्र निकाय पर सेवा देने के योग्य वे समझते हैं - “ज्ञान और समझ के दिवास्त्रोत”, ईश्वर के धर्म में दृढ़”, और “समस्त मानवजाति के हित-चिन्तक”19। जैसा कि प्रत्येक बहाई संस्था की चुनाव-प्रक्रिया में लागू होता है, विश्व न्याय मंदिर के चुनाव में भी नामांकन, चुनाव-प्रचार, मत-याचना अथवा प्रचार करने जैसी बातों की वर्जना है।

विश्व न्याय मंदिर की सदस्यता पुरूषों तक सीमित है। यह आश्चर्यजनक बात लग सकती है, लेकिन प्रावधान स्वयं बहाउल्लाह द्वारा दिया गया है, अब्दुल-बहा ने कहा है कि इसका विवेक भविष्य में स्पष्ट समझा जा सकेगा। क्योंकि बहाई लेख ऐसे वक्तव्यों से भरा पड़ा है जिनमें स्त्री-पुरूष की समानता की चर्चा मिलती है, फिर भी विश्व न्याय मंदिर में पुरूषों की सदस्यता किसी भी रूप में स्त्रियों की तुलना में पुरूषों का वर्चस्व नहीं माना जाना चाहिये। अब्दुल-बहा लिखते हैं कि स्त्री और पुरूष की समानता एक “स्थापित वास्तविकता”20 है। विश्व न्याय मंदिर स्त्री और पुरूष की समानता के सिद्धांत के लिये पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। विश्व भर में बहाई समुदायों को यही मार्गदर्शन दिया गया है। यह मार्गदर्शन महिलाओं के विकास, ख़ासकर लड़कियों की शिक्षा और विकास के लिये आवंटित संसाधनों, युनाइटेड नेशंस स्थित बहाई अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा जारी वक्तव्यों और विभिन्न सम्मेलनों, सेमिनारों तथा अन्य कार्यक्रमों के बहाईयों की प्रतिभागिता के माध्यम से दिया जाता है।

नोट्स

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