बहाई क्या मानते हैं
बहाउल्लाह और ‘उनकी’ संविदा
अब्दुल‑बहा – परिपूर्ण उदाहरण
अब्दुल-बहा के उद्धरण
- बहाई क्या मानते हैं
- सिंहावलोकन/अवलोकन
- बहाउल्लाह और ‘उनकी’ संविदा
- आत्मा का जीवन
- ईश्वर और ‘उसकी’ रचना
- आवश्यक सम्बन्ध
- विश्वव्यापी शांति
- बहाई क्या करते हैं
‘अब्दुल-बहा के लेख और वार्ताएँ आधी सदी से अधिक की अथक मेहनत का फल हैं। अब्दुल-बहा कोई पैग़म्बर नहीं थे और न ही उन्होंने कभी यह दावा किया कि उन्हें ईश्वर से प्रत्यक्ष प्रकटीकरण प्राप्त हुआ। लेकिन बहाउल्लाह की संविदा के केन्द्र के रूप में, और बहाई प्रकटीकरण के नियुक्त व्याख्याता के रूप में, उनके लेख न केवल उसकी व्याख्या करते हैं, बल्कि बहाई धर्मग्रंथ का एक भाग भी हैं।
अब तक प्रकाशित पुस्तकों के रूप में उनके विशाल कृतित्व में व्यक्तिगत पत्राचार, सामान्य पत्र, विशेष विषयों की व्याख्याएँ, पुस्तकें, प्रार्थनाएँ, कविताएँ, सार्वजनिक भाषण, तथा दर्ज वार्तालाप सम्मिलित हैं। अब्दुल-बहा से मिलने वाले हर व्यक्ति ने उन्हें विशिष्ट शैली और वाक्पटुता का आदर्श माना।
उनके शब्द सरल हैं जैसे सूर्य का प्रकाश; और पुनः सूर्य के प्रकाश की तरह, वे सार्वभौमिक हैं..।
नीचे अब्दुल-बहा के लेखों और वार्ताओं से कुछ उद्धरणों का एक छोटा सा चयन प्रस्तुत है।
...यह निश्चित और निर्विवाद है कि मनुष्य का रचयिता स्वयं मनुष्य के जैसा नहीं है, क्योंकि जो शक्तिहीन है वह किसी अन्य प्राणी की रचना नहीं कर सकता, और जो सक्रिय रचयिता है उसके पास अपनी कृतियों को सृजित करने के लिए सभी गुणों का पूर्ण होना आवश्यक है... इस प्रकार सृष्टि का संसार कमी और त्रुटि का स्रोत है और ईश्वर पूर्णता का स्रोत है। सृष्टि संसार की यही कमियाँ ईश्वर की पूर्णताओं की गवाही देती हैं।
एक ही ईश्वर है; मानवजाति एक है; धर्म की नींव एक ही है। आओ हम उसकी उपासना करें और उसके सभी महान पैगम्बरों व सं देशवाहकों का गुणगान करें, जिन्होंने उसकी आभा और महिमा को प्रकट किया है।
सृजन की उच्चतम स्थिति, सर्वोच्च क्षेत्र, सबसे श्रेष्ठ और सबसे उत्कृष्ट स्थान—चाहे वह दृश्य हो या अदृश्य, आदि हो या अंत—वह ईश्वर के पैगम्बरों का है, यद्यपि बाहरी दृष्टि से उनके पास अपनी गरीबी के अलावा और कुछ नज़र नहीं आता।
ईश्वर के दिव्य अवतारों की सोच सार्वभौमिक और समावेशी थी। उन्होंने सबकी जीवन-उन्नति के लिए प्रयत्न किये और सर्वजन की शिक्षाओं की सेवा में लगे रहे। उनके उद्देश्यों की सीमा कभी संकीर्ण नहीं रही—बल्कि वह विशाल और सबको समेटने वाली थी।
दिव्य धर्मों की स्थापना मानवता की एकता और सार्वभौमिक शांति की स्थापना के लिए की गई थी। कोई भी आंदोलन, जो मानव समाज में शांति और एकता लाता है, वास्तव में एक दिव्य आंदोलन है; कोई भी सुधार, जिससे लोग एक ही मंडप (छत्रछाया) के नीचे एकत्रित होते हैं, निश्चय ही वह स्वर्गीय उद्देश्यों से प्रेरित होता है।
अब नया युग आ गया है और सृष्टि का पुनर्जन्म हो गया है। मानवजाति ने नया जीवन धारण कर लिया है। पतझड़ बीत गया है और पुनर्जीवित करने वाला वसंत आ पहुंचा है। अब सभी चीज़ें नई हो गई हैं। कलाएँ और उद्योगों का पुनर्जीवन हुआ है, विज्ञान में नये-नये आविष्कार हो रहे हैं, नये खोज हो रहे हैं; यहाँ तक कि मानव जीवन के छोटे-छोटे पहलू, जैसे पहनावे और व्यक्तिगत वस्तुएँ—यहाँ तक कि अस्त्र-शस्त्र—इन सभी में भी नवीनता आ गई है। प्रत्येक सरकार के विधानों और प्रक्रियाओं में स ंशोधन किया गया है। इस युग की पहचान ही नवीनीकरण है।
और इस सारी नूतनता का स्रोत राज्य के स्वामी की अद्भुत कृपा और अनुग्रह की नयी वर्षा में निहित है, जिसने संसार को नवीकृत कर दिया है। अतः लोगों को पुराने विचार-धाराओं से पूर्णत: मुक्त कर देना चाहिए ताकि उनका सारा ध्यान इन नये सिद्धांतों पर केन्द्रित हो सके, क्योंकि यही इस युग का प्रकाश हैं और इसी युग की आत्मा।
वह दिन आएगा जब संसार के सभी धर्म एक हो जाएंगे, क्योंकि सिद्धांत में वे पहले से ही एक हैं। विभाजन की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि केवल बाहरी रूप ही उन्हें अलग करता है। मानवजाति के कुछ लोग अज्ञान के कारण दुखी हैं, आइए हम उन्हें शिक्षा दें; अन्य कुछ बालकों के समान हैं जिन्हें देखभाल और शिक्षा की आवश्यकता है, जब तक वे बड़े न हो जाएं, और कुछ बीमार है ं—इन तक हमें दिव्य उपचार पहुँचाना है।
प्रेम वह सबसे महान नियम है, जो इस महान और स्वर्गीय युग को संचालित करता है, वही अद्वितीय शक्ति है जो इस भौतिक जगत के विभिन्न तत्त्वों को बाँधती है, और वही सर्वोच्च चुंबकीय शक्ति है जो दिव्य लोकों में ग्रहों की गति को नियंत्रित करती है।
बहाउल्लाह ने एकता का एक वृत्त खींचा है, ‘उन्होंने’ सभी लोगों को एक करने और विश्वव्यापी एकता के मंडप-वितान के नीचे शरण पाने की एक रूपरेखा दी है। यह ‘दिव्य उदारता’ का वरदान है, और हमें अवश्य ही पूरे ह्रदय व आत्मा से प्रयत्न करते रहना चाहिये जब तक हम अपने बीच एकता को वास्तविक रूप में न प्राप्त कर लें, और जब हम काम करेंगे, तो हमे शक्ति भी प्रदान की जाएगी।
उद्यान के पुष्पों पर विचार करो। यद्यपि वे प्रकार, रंग, रूप और आकार में एक-दूसरे से भिन्न हैं, फिर भी, चूंकि वे एक ही स्रोत के जल से सिंचित होते हैं, एक ही पवन के झोंकों से पुनर्जीवित होते हैं, और एक ही सूर्य की किरणों से सशक्त होते हैं, यह विविधता ही उनकी शोभा को बढ़ाती है एवं उनकी सुंदरता में इज़ाफ़ा करती है। आँखों को कितना अप्रिय प्रतीत होता, यदि उस उद्यान के सभी फूल-पौधे, पत्ते-बूटियाँ, फल-फूल, शाखाएँ और वृक्ष एक ही आकार और रंग के होते! रंग, रूप और आकृति की विविधता ही उस उद्यान को समृद्ध और सुसज्जित बनाती है, और उसके प्रभाव को और बढ़ाती है। उसी प्रकार, जब विचार, स्वभाव और चरित्र की विविध छाएँ, एक केन्द्रीय शक्ति और प्रभाव के अधीन एकत्रित होती हैं, तो मानव-पूर्णता की शोभा और महिमा प्रकट और प्रकटित होती है। केवल ईश्वर के वचन की दिव्य शक्ति, जो समस्त वस्तुओं की वास्तविकता पर शासन करती है और उन्हें पार कर जाती है, ही मनुष्य की संतानों के भिन्न विचारों, भावनाओं, धारणाओं और विश्वासों में समरसता स्थापित करने में सक्षम है।
ईमानदारी आस्था की नींव है। अर्थात्, एक धार्मिक व्यक्ति को अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं को भूल जाना चाहिए और किसी भी प्रकार से पूरे दिल से लोकहित की सेवा करनी चाहिए; और यह असंभव है कि कोई मनुष्य अपने निजी लाभों को छोड़कर, केवल सच्ची धार्मिक आस्था के बिना, समुदाय की भलाई के लिए अपने सुख का बलिदान कर सके।
सच्ची सभ्यता का ध्वज इस संसार के मध्य भाग में तब लहराएगा, जब पृथ्वी के कुछ विशिष्ट और उच्च-मन वाले शासक—भक्ति और संकल्प के उज्ज्वल आदर्श—समस्त मानवता की भलाई और प्रसन्नता के लिए, अडिग निश्चय और स्पष्ट दृष्टि से, सार्वभौमिक शांति की स्थापना के लिए आगे आएँगे। उन्हें चाहिए कि शांति के प्रयास को सामूहिक परामर्श का विषय बनाएं, और अपनी सामर्थ्य के प्रत्येक साधन से विश्व के राष्ट्रों की एकता की स्थापना करें। उन्हें एक सशक्त संधि और संविदा करनी चाहिए, जिसमें प्रावधान मजबूत, अपराजेय और निश्चित हों। इसको पूरी दुनिया में घोषित किया जाए और सम्पूर्ण मानवजाति की स्वीकृति प्राप्त हो। यह सर्वोच्च और उत्कृष्ट उद्यम—पूरी दुनिया की शांति और भलाई के लिए वास्तविक स्रोत—पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए पावन माना जाना चाहिए।
बच्चों की शिक्षा और प्रशिक्षण मानव जाति के सबसे पुण्य कार्यों में है और यह सर्वदयालु (ईश्वर) की कृपा और अनुकंपा को आकर्षित करता है, क्योंकि शिक्षा हर प्रकार की मानवीय श्रेष्ठता की अनिवार्य नींव है और मनुष्य के लिए शाश्वत महिमा की ऊँचाइयों तक पहुँचने का मार्ग खोलती है।
मानव की वास्तविकता उसका विचार है, उसका भौतिक शरीर नहीं। विचार शक्ति तथा पाशविक शक्ति हिस्सेदार हैं। यद्यपि मानव पाशविक सृष्टि का भाग है, परन्तु उसे विचार शक्ति प्राप्त है जो अन्य सभी सृजित जीवों से उत्तम है।
अगर किसी मनुष्य के विचार लगातार स्वर्गीय विषयों की ओर आकांक्षी रहते हैं, तो वह संत स्वभाव का बन जाता है; दूसरी ओर, यदि उसके विचार ऊपर नहीं उठते, बल्कि इस संसार की चीज़ों पर ही केन्द्रित हो जाते हैं, तो वह धीरे-धीरे और अधिक भौतिकवादी होता जाता है, यहाँ तक कि उसकी अवस्था केवल एक पशु जैसी हो जाती है...।
कुछ स्त्री-पुरुष अपने उच्च विचारों में ही गर्व का अनुभव करते हैं लेकिन यदि ये विचार कभी कर्म के धरातल तक नहीं पहुँचते तो ये निरर्थक ही रह जाते हैं: विचार की शक्ति अपने कर्मों में अभिव्यक्ति पर ही निर्भर करती है।
जब युद्ध का भाव मन में आये, तो उससे भी अधिक प्रबल शांति के भाव से उसका सामना करो। घृणा के विचार का नाश अधिक शक्तिशाली प्रेम के विचार से करो।
हे प्रभु के प्रियजनों! इस पावन युग में, लड़ाई-झगड़े और विवाद किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं हैं। जो भी आक्रमण करता है वह स्वयं को ईश्वर की कृपा से वंचित कर लेता है।
पूर्ण एकता में रहो। आपस में कभी क्रुद्ध मत हो... प्राणियों से ईश्वर के लिए प्रेम करो, न कि उनके लिए। यदि तुम उनसे ईश्वर के लिए प्रेम करोगे तो कभी क्रोधित या असहिष्णु नहीं बनोगे। मानवता पूर्ण नहीं है। हर मनुष्य में अपूर्णताएँ हैं, और यदि तुम लोगों के स्वभाव की ओर देखोगे तो सदा दुःखी रहोगे। लेकिन यदि तुम ईश्वर की ओर देखोगे, तो उनसे प्रेम करोगे और उन्हें दया करोगे, क्योंकि ईश्वर का संसार पूर्णता और पूर्ण दया का संसार है।
इस युग का सबसे आवश्यक कर्तव्य है कि अपने चरित्रों को शुद्ध करो, अपने आचरण को सँवारो और व्यवहार को सुधारो। सर्वदयालु के प्रियजनों को ऐसा चरित्र और आचरण संसार में दिखाना चाहिये कि उनकी पवित्रता की सुगंध सम्पूर्ण संसार में फैल जाए और मरे हुओं को भी जीवन मिल जाए, क्योंकि ईश्वर के अवतार का उद्देश्य और अनंत जगत के अजाने प्रकाश का उदय मनुष्यों की आत्माओं का शिक्षण और सभी जीवित मनुष्यों के चरित्र का परिष्कार करना है—ताकि वे भाग्यशाली व्यक्ति, जिन्होंने स्वयं को पशु-संसार की कालिमा से मुक्त कर लिया है, वे उठ खड़े हों और वे गुण धारित करें, जो मनुष्य की सच्ची पहचान के अलंकरण हैं।
यदि तुम दिल से चाहते हो कि पृथ्वी की हर जाति से मित्रता हो, तो तुम्हारा यह आत्मिक और सकारात्मक विचार फैल जाएगा; यह औरों की भी इच्छा बन जाएगी, दिनों-दिन प्रबल होती जाएगी, और अंततः यह सभी मनुष्यों के चित्त और विचार तक पहुँच जाएगी।
‘अब्दुल-बहा’ के लेखों से और अधिक…
अंग्रेज़ी में उपलब्ध अब्दुल-बहा के लेखों और वार्ताओं की अनेक पुस्तकों के बारे में आप और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, तथा चयनित अंशों को लेख एवं संसाधन अनुभाग में पढ़ सकते हैं।
अब्दुल-बहा के लेखों और वार्ताओं के प्रकाशित संग्रह पूर्ण रूप से बहाई संदर्भ ग्रंथालय में उपलब्ध हैं।







