बहाई क्या मानते हैं
बहाउल्लाह और ‘उनकी’ संविदा
अब्दुल‑बहा – परिपूर्ण उदाहरण
अब्दुल-बहा का महत्व
- बहाई क्या मानते हैं
- सिंहावलोकन/अवलोकन
- बहाउल्लाह और ‘उनकी’ संविदा
- आत्मा का जीवन
- ईश्वर और ‘उसकी’ रचना
- आवश्यक सम्बन्ध
- विश्वव्यापी शांति
- बहाई क्या करते हैं
“बहुत कम लोगों को मैंने देखा है जिनका व्यक्तित्व मुझ पर इतना प्रभावशाली रहा हो,” कैंब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एडवर्ड जी. ब्राउन ने अब्दुल-बहा से मिलने के बाद कहा। “इस महान व्यक्ति और उसकी शक्ति के विषय में कोई भी जिसने उन्हें देखा है, कोई संदेह नहीं कर सकता था।”
फिर भी, चाहे अब्दुल-बहा का व्यक्तित्व जितना भी आकर्षक क्यों न हो या उनकी अन्तरदृष्टियाँ जितनी भी गहन क्यों न हों, धार्मिक इतिहास में इतने अद्वितीय चरित्र की व्याख्या ऐसी प्रशंसा से पूरी नहीं की जा सकती। बहाई पावन लेखों में यह पुष्टि की गई है कि “अब्दुल-बहा के व्यक्तित्व में मानवीय प्रकृति के असंगत गुण और अलौकिक ज्ञान एवं पूर्णता पूर्णतः समन्वित और एकीकृत हो गये हैं।”
बहाउल्लाह की संविदा का केन्द्र
धर्मों में उत्तराधिकार का प्रश्न हमेशा ही अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। उदाहरण स्वरूप, यीशु और मुहम्मद के सच्चे उत्तराधिकारियों को लेकर अस्पष्टता ने पवित्र धर्मग्रंथों की विभिन्न व्याख्याओं और इसाई तथा इस्लाम—दोनों धर्मों में गहरे मतभेद उत्पन्न कर दिये।
अब्दुल-बहा के माध्यम से एक 'केन्द्र' की स्थापना—जिसकी ओर सभी उन्मुख हों—के द्वारा ही बहाउल्लाह अपना आशा और सार्वभौमिक शांति का संदेश, संसार के हर कोने में पहुँचा सके। यह 'संविदा' वह साधन था जिसने बहाई समुदाय की एकता सुनिश्चित की और बहाउल्लाह की शिक्षाओं की अखण्डता की रक्षा की। यदि अब्दुल-बहा इस सेंटर के रूप में न होते, तो बहाउल्लाह के प्रकटीकरण की अपार सृजनात्मक शक्ति मानवता तक प्रवाहित नहीं हो पाती, न ही उसकी सार्थकता पूरी तरह समझी जा सकती थी।
अब्दुल-बहा द्वारा शिकागो के प्लायमाउथ कांग्रिगेशनल चर्च में संबोधन, 5 मई 1912।
‘अब्दुल-बहा ने अपने पिता के धर्म की शिक्षाओं की व्याख्या की, उसके सिद्धांतों को विस्तार दिया और उसकी प्रशासनिक संस्थाओं की मुख्य विशेषताओं को निर्धारित किया। वे बहाई समुदाय के तीव्र विस्तार के मार्गदर्शक एवं योजनाकार थे, जिन्होंने कभी भी गलती नहीं की। इसके अतिरिक्त, ‘अब्दुल-बहा ने अपने व्यक्तिगत एवं सामाजिक आचरण में ऐसी पूर्णता का उदाहरण प्रस्तुत किया कि मानवता के लिए अनुकरणीय प्रतिमान छोड़ दिया।
महत्वपूर्ण सत्यों की उद्घोषणा
अपने लेखों और यात्राओं के दौरान, अब्दुल-बहा ने विचारशील नेताओं से लेकर असंख्य समूहों और व्यक्तियों तक, अपार परिश्रम से कुछ अत्यन्त महत्वपूर्ण सत्य सुनाये। इन सत्यों में थे: “सत्य की स्वतंत्र खोज, जो अंधविश्वास और परम्परा की बेड़ियों से मुक्त हो; सम्पूर्ण मानवजाती की एकता—जो इस धर्म का केन्द्रीय और मुख्य सिद्धांत है; सभी धर्मों की मूलभूत एकता; सभी प्रकार के पूर्वाग्रह का विरोध—चाहे वह धार्मिक हो, नस्ली हो, वर्ग या राष्ट्रीय हो; धर्म और विज्ञान के बीच में आवश्यक समरसता; स्त्री-पुरुष की समानता—वे दो पंख जिनसे मानवता का पक्षी उड़ सकता है; अनिवार्य शिक्षा की शुरुआत; एक सार्वभौमिक सहायक भाषा को अपनाना; धन और गरीबी की अति का समाप्त करना; राष्ट्रों के बीच विवादों के समाधान के लिये एक विश्व न्यायाधिकरण की स्थापना; सेवा-भावना के साथ किया गया श्रम—उसे उपासना के स्तर तक प्रतिष्ठित करना; मानव समाज में प्रमुख नियम के रूप में न्याय की महिमा और धर्म को समस्त मानवता और राष्ट्रों की रक्षा के लिए दृढ़ आधार बनाना; और समस्त मानवजाति का सर्वोच्च लक्ष्य—स्थायी और सार्वभौमिक शांति की स्थापना।”
महिमा के सेवक
‘अब्दुल-बहा ने बार-बार इस तथ्य की पुष्टि की कि वे “शांति और मेल-मिलाप के अग्रदूत”, “मानव एकता के पक्षधर” और मानवता को “ईश्वर के राज्य” की ओर बुलाने वाले सेवक हैं।
उन्हें प्राप्त प्रशंसा के बावजूद, ‘अब्दुल-बहा ने सदैव यह स्पष्ट किया कि उनकी समस्त सोच की जड़ बहाउल्लाह ही हैं। अमेरिका में अपने अनुयायियों को लिखे पत्र में उन्होंने लिखा: “मेरा नाम 'अब्दुल-बहा' (अर्थात 'बहाउल्लाह का सेवक') है। मेरी पहचान 'अब्दुल-बहा' है। मेरी वास्तविकता 'अब्दुल-बहा' है। मेरी प्रतिष्ठा 'अब्दुल-बहा' है। धन्य पूर्णता [बहाउल्लाह] की दासता ही मेरा गौरवपूर्ण और देदीप्यमान मुकुट है, और सम्पूर्ण मानव जाति की सेवा ही मेरा शाश्वत धर्म... न तो मेरे पास कोई नाम, कोई उपाधि, कोई उल्लेख, न कोई प्रशंसा है, और न होगी, सिवाय 'अब्दुल-बहा' के। यही मेरी अभिलाषा है। यही मेरी सबसे बड़ी आकांक्षा है। यही मेरा शाश्वत जीवन है। यही मेरी सदा की महिमा है।”
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